Cheekh
रोशनी लाल, हरी, नीली, कई रंगोंकी
रोशनी हैं यहाँ.
क्यूँ सिर्फ अँधेरा नजर आता हैं फिर मुझे?
शोर गानोंका, घुंगरूओंका, तालियों और
सिटिओंका कितना शोर हैं यहाँ.
क्यूँ फिर सुनाई देती हैं मुझे सिर्फ चींख अपने भूखे बच्चेकी?
पैर नाच रहे हैं मेरे, होटोंपर हैं हसी,
पर मनमें सवाल हैं कई, कौन हूँ मैं? क्यूँ हूँ मैं
यहाँ? क्या गलती हैं मेरी?
अचानक से महसूस हुई सीर पर होनेवाली नोटोंकी बरसात और सवाल वहीं थम गए.
इसीसे भरेगा मेरे बच्चेका पेट, इसीसे होगी उसकी
चींखे शांत, इसीसे चलेगा मेरा चूल्हा,
इसीसे बना रहेगा मेरा आत्मसम्मान.
क्यूँ डाले जा रहे हैं मुझपर इल्जाम इतने? नहीं बेच रही मैं
अपना शरीर,
नहीं तोड़ना मुझे किसी और औरत का घर, नहीं करना मुझे
संसारोंका कत्ल.
नजर आता हैं मुझे सिर्फ अँधेरा, सुनाई देती हैं
मुझे सिर्फ अपने बच्चेकी चींख.
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By
Sneha Karle
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